8 वीं शताब्दी – 14वीं शताब्दी | |
Monarch(s) | हारून रशीद |
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अब्बासियों के राज में इस्लाम का स्वर्ण युग शुरु हुआ। अब्बासी खलीफा ज्ञान को बहुत महत्त्व देते थे। मुस्लिम दुनिया बहुत तेज़ी से विश्व का बौद्धिक केन्द्र बनने लगी। कई विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभ्यताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी में अनुवाद किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस के कारण बहुत बड़ा ज्ञानकोश इतिहास के पन्नों में खोने से रह गया। मुस्लिम विद्वानों ने सिर्फ अनुवाद ही नहीं किया। उन्होंने इन सभी विषयों में अपनी छाप भी छोड़ी।
चिकित्सा विज्ञान में शरीर रचना और रोगों से संबंधित कई नई खोजें हूईं जैसे कि खसरा और चेचक के बीच में जो फर्क है उसे समझा गया। इब्ने सीना (९८०-१०३७) ने चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो कि आगे जा कर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का आधार बनीं। इस लिये इब्ने सीना को आधुनिक चिकित्सा का पिता भी कहा जाता है। इसी तरह से अल हैथाम को प्रकाशिकी विज्ञान का पिता और अबु मूसा जबीर को रसायन शास्त्र का पिता भी कहा जाता है। अल ख्वारिज़्मी की किताब किताब-अल-जबर-वल-मुक़ाबला से ही बीजगणित को उसका यूरोपीय नाम 'algebra' मिला। अल ख्वारिज़्मी को बीजगणित की पिता कहा जाता है।
इस्लामी दर्शनशास्त्र में प्राचीन युनानी सभय्ता के दर्शनशास्र को इस्लामी रंग से विकसित किया गया। इब्ने सीना ने नवप्लेटोवाद, अरस्तुवाद और इस्लामी धर्मशास्त्र को जोड़ कर सिद्धांतों की एक नई प्रणाली की रचना की। इससे दर्शनशास्र में एक नई लहर पैदा हुई जिसे इबनसीनावाद कहते हैं। इसी तरह इबन रशुद ने अरस्तू के सिद्धांतों को इस्लामी सिद्धांतों से जोड़ कर इबनरशुवाद को जन्म दिया। द्वंद्ववाद की मदद से इस्लामी धर्मशास्त्र का अध्ययन करने की कला को विकसित किया गया। इसे कलाम कहते हैं। मुहम्मद साहब के उद्धरण, गतिविधियां इत्यादि के मतलब खोजना और उनसे कानून बनाना स्वयँ एक विषय बन गया। सुन्नी इस्लाम में इससे विद्वानों के बीच मतभेद हुआ और सुन्नी इस्लाम कानूनी मामलों में ४ हिस्सों में बट गया।
राजनैतिक तौर पर अब्बासी सम्राज्य धीरे धीरे कमज़ोर पड़ता गया। अफ्रीका में कई मुस्लिम प्रदेशों ने ८५० तक अपने आप को लगभग स्वतंत्र कर लिया। ईरान में भी यही हाल हो गया। सिर्फ कहने को यह प्रदेश अब्बासियों के अधीन थे। महमूद ग़ज़नी (९७१-१०३०) ने अपने आप को तो सुल्तान भी घोषित कर दिया। सल्जूक तुर्को ने अब्बासियों की सेना शक्ति नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मध्य एशिया और ईरान के कई प्रदेशों पर राज किया। हालांकि यह सभी राज्य आपस में युद्ध भी करते थे पर एक ही इस्लामी संस्कृति होने के कारण आम लोगों में बुनियादी संपर्क अभी भी नहीं टूटा था। इस का कृषिविज्ञान पर बहुत असर पड़ा। कई फसलों को नई जगह ले जाकर बोया गया। यह मुस्लिम कृषि क्रांति कहलाती है।
मुख्य लेख: विज्ञान की ओर इस्लामी दृष्टिकोण
विभिन्न कुरानिक आदेश और हदीस, जो शिक्षा पर मूल्य डालते हैं और ज्ञान प्राप्त करने के महत्त्व पर जोर देते हैं, इस युग के मुसलमानों को ज्ञान की खोज और विज्ञान के शरीर के विकास में प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।.
इस्लामी साम्राज्य ने विद्वानों को बहुत संरक्षित किया। कुछ अनुवादों के लिए अनुवाद आंदोलन पर खर्च किया गया था। सबसे अच्छे विद्वानों और उल्लेखनीय अनुवादकों, जैसे हुनैन इब्न इशाक का वेतन था जो आज पेशेवर एथलीटों के बराबर होने का अनुमान है। बैत अल-हिक्मा या हाउस ऑफ विस्डम एक पुस्तकालय था जिसे अलिसिद-युग बगदाद, इराक में खलीफा अल-मंसूर द्वारा स्थापित किया गया था।.
और जानकारी: मदरसा
पवित्रशास्त्र की केंद्रीयता और इस्लामी परंपरा में इसके अध्ययन ने इस्लाम के इतिहास में लगभग हर समय और जगह में शिक्षा को केंद्रीय स्तंभ बनाने में मदद की। इस्लामिक परंपरा में सीखने का महत्त्व हज़रत मुहम्मद सहाब की कई हदीसों में दर्शाया गया है, जिसमें एक व्यक्ति "ज्ञान प्राप्त करने, यहां तक कि चीन में भी जाना पड़े तो जाया जाये। यह आदेश विशेष रूप से विद्वानों के लिए लागू होता था।
इस्लामी धार्मिक विज्ञान से पूर्व-इस्लामी सभ्यताओं, जैसे दर्शन और चिकित्सा, जिसे उन्होंने "पूर्वजों के विज्ञान" या "तर्कसंगत विज्ञान" कहा जाता है, विरासत में विशिष्ट विषयों को प्राप्त किया। कई सदियों तक पूर्व प्रकार की विज्ञान विकसित हुई, और उनके संचरण ने शास्त्रीय और मध्ययुगीन इस्लाम में शैक्षणिक ढांचे का हिस्सा बनाया। कुछ मामलों में, उन्हें बगदाद में हाउस ऑफ विस्डम जैसे संस्थानों द्वारा समर्थित किया गया था।
मुख्य लेख: इस्लामी दर्शन
इब्न सिना (एविसेना) और इब्न रश्द (एवररोस) ने अरिस्टोटल के कार्यों को बचाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई, जिनके विचार ईसाई और मुस्लिम दुनिया के गैर-धार्मिक विचारों पर हावी होने लगे। दर्शनशास्त्र के स्टैनफोर्ड एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, पश्चिमी यूरोप में अरबी से लैटिन के दार्शनिक ग्रंथों के अनुवाद ने मध्ययुगीन लैटिन दुनिया में लगभग सभी दार्शनिक विषयों को परिवर्तन किया।. यूरोप में इस्लामी दार्शनिकों का प्रभाव प्राकृतिक दर्शन, मनोविज्ञान और आध्यात्मिक तत्वों में विशेष रूप से मजबूत था, हालांकि इसका तर्क और नैतिकता के अध्ययन पर भी असर पड़ा।