उपस्कर अवतरण प्रणाली (instrument landing system या ILS) एक भूमि पर स्थापित उपस्कर अप्रोच प्रणाली होती है, जो विमान को उड़ान पट्टी पर पहुंचते हुए और अवतरण के समय सटीक मार्गदर्शन उपलब्ध कराती है। इसमें रेडियो संकेतों के संयोजन एवं कई स्थानों पर उच्च-तीव्रता के प्रकाश एरेज़ का प्रयोग किया जाता है जिससे कि निम्न दृश्यता, खराब मौसम, हिमपात, उड़ान प्रतिबंधों आदि के रहते हुए भी विमान का सुरक्षित अवतरण सुनिश्चित हो सके।
प्रत्येक आई.एल.एस एप्रोच के लिये इन्स्ट्रुमेन्ट अप्रोच प्रोसीजर चार्ट्स (अप्रोच प्लेट्स) उपलब्ध रहते हैं, जो विमानचालकों को आई.एफ़.आर (उपस्कर उड़ान नियम) प्रचालन के प्रयोग हेतु वांछित जानकारी, वहां से संबंधित प्रणाली के घटकों द्वारा प्रयोग की गयीं रेडियो आवृत्तियां एवं उस प्रणाली विशेष के प्रयोग हेतु निश्चित की गईं न्यूनतम सुरक्षित दॄश्यता आवश्यकताएं (मिनिमम विज़िबिलिटी रिक्वायरमेन्ट्स) आदि का पूर्ण ब्यौरा दिया गया होता है।
रेडियो-नौवहन सहायताएं (एड्स) सीएएसटी/आइ सी ए ओ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मानकों हेतु निर्धारित की गईं सीमा के भीतर ही रहनी चाहिये। सुरक्षा कारणों से इन सीमाओं को सुनिश्चित करने हेतु निश्चित अवधि के भीतर समय समय पर कुछ उड़ान निरीक्षण संगठन इन उपस्करों की जाँच करते रहते हैं। ये निरीक्षण आइ.एल.एस उपस्करों की जांच एवं परिशुद्धता प्रमाणन हेतु सक्षम एवं संगत उपर्करों से सुसज्जित विमान द्वारा जांच कार्य सम्पन्न किया करते हैं। भारत में ये कार्य भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के अधीन एक इकाई उड़ान निरीक्षण एकक द्वारा सम्पन्न की जाती है।
एक आई.एल.एस प्रणाली दो स्वतंत्र उप-प्रणालियों से बनती है, जिनमें से उड़ानपट्टी को अग्रसर अवतरण करते हुए विमान को एक क्षैतिज मार्गदर्शन करती है (लोकलाईज़र), तथा दूसरी ऊर्ध्वाधर मार्गदर्शन (ग्लाइडपाथ) करती है। ये मार्गदर्शन विमान संचालन कर रहे पायलट को विमान के डैशबोर्ड पर उपस्थित आई.एल.एस रिसीवर द्वारा मॉड्यूलन गहराई तुलना (मॉड्यूलेशन डेप्थ कम्पैरिज़न) कर के उपलब्ध होता है।
लोकलाइज़र (LOC, या LLZ भी प्रयोग में था जब तक कि ICAO ने LOC को आधिकारिक प्रयोग मान्यता नहीं दे दी) एन्टीना एरे उड़ानपट्टी के प्रस्थान छोर के पार सुरक्षित दूरी पर स्थापित किया जाता है। ये एण्टीना प्रायः सदिश एन्टीनाओं के बहुत से जोड़ों से बनता है। आई.एल.एस के ४० में से किसी एक निश्चित चैनल पर कैरियर आवृत्ति परास 108.10 मेगा हर्ट्ज़ एवं 111.95 मेगाहर्ट्ज़ (जिसमें the 100 कि.हर्ट्ज़ का प्रथम अंक सदा ऑड होता है, अतः लोकलाइज़र आवृत्तियाँ 108.10, 108.15, 108.30 और इसी प्रकार आगे चलती हैं, किन्तु 108.20, 108.25, 108.40, का प्रयोग नहीं किया जाता है।) एक को ९० हर्ट्ज़ पर एम्प्लीट्यूड मॉड्यूलन किया जाता है, जबकि दूसरी को १५० हर्ट्ज़ पर। और तब इन दोनों कैरियर आवृत्तियों को भिन्न किन्तु सह-स्थापित एण्टीना प्रणाली से प्रसारित किया जाता है। प्रत्येक एण्टीना एक तंग बीम प्रेक्षित करता है, जिनमें से बायां एण्टीना उड़ानपट्टी मध्यरेखा के कुछ बांयीं ओर तथा दायां एण्टीना कुछ दायीं ओर।
विमान में रखा लोकलाइज़र रिसीवर 90 Hz एवं 150 Hz संकेतों में मॉड्यूलन गहरायी में अंतर (डिफ़रेन्स इन डेप्थ ऑफ़ मॉड्यूलेशन यानि DDM) मापता है। लोकलाइज़र उपस्कर के लिये प्रत्येक मॉड्यूलेटिंग आवृत्ति के लिये मॉड्यूलेशन गहरायी २०% होती है। तब ९० एवं १५० हर्ट्ज़ वाले दोनों संकेतों की गहरायी में अंतर (डीडीएम) आने वाले विमान की मध्य-रेखा से विचलन के अनुसार अलग अलग माण का होता है।
यदि विमानचालक को 90 Hz या 150 Hz मॉड्यूलन संकेतों में से किसी एक की अधिकता मिलती है, तो इसका सीधा अर्थ है कि विमाण मध्य-रेखा से विचलित है। कॉकपिट में क्षैतिज स्थिति संकेतक (हॉरिज़ॉन्टल सिचुएशन इंडिकेटर या HSI, आईएलएस उपस्कर के विमान भाग का एक अंग) या कोर्स डेविएशन इंडिकेटर (सीडीआई या CDI) दर्शाता है कि विमान को बायें या दायें लिने से इस त्रुटि में सुधार किया जा सकता है। यदि डीडीएम शून्य है, तब विमान मध्य-रेखा के ठीक ऊपर है एवं सीडीआई की सूई ठीक शून्य दिखाती है। इस स्थिति में विमान उड़ानपट्टी की मध्य रेखा से मेल खाती लोकलाईज़र की असल मध्य-रेखा पर स्थित है। किसी सुधार की आवश्यकता नहीं है।
ग्लाइडस्लोप (GS) या ग्लाइडपाथ (GP) एन्टीना एरे उड़ानपट्टी की टचडाउन बिन्दु के किसी एक ओर लगी होतई है। ग्लाइडपाथ संकेत 328.6 एवं 335.4 मेगाहर्ट्ज़ की कैरियर आवृत्ति को लोकलाईज़र के समान तकनीक से मॉड्यूलन करके ही प्रेक्षित किया जाता है। ग्लाइडपाथ की मध्यरेखा क्षैतिज से लगभग 3° कोण बनाते हुए ऊपर की ओर उठती है। यह बीम 1.4° गहरी; ग्लाइडस्लोप मध्य-रेखा से 0.7° नीचे एवं उससे 0.7° ऊपर को प्रेक्षित होती है।
ये संकेत भी विमान के कॉकपिट में रखे आईएलएस के पटल पर दिखाये जाते हैं। ये उपस्कर प्रायः ओम्नी-बियरिंग इंडिकेटर या नैव इण्डिकेटर कहलाते हैं। पायलट विमान को इस प्रकार नियंत्रित करता है कि सीडीआई पटल पर क्षैतिज सूई पटल की मध्य रेखा पर (शून्य स्थिति) पर ही रहे। ये सुनिश्चित करता है कि विमान उड़ान-पट्टी की मध्यरेखा के ठीक ऊपर ही है। इस प्रकार पायलट को ऊर्ध्वाधर मार्गदर्शन मिलता है और वह टचडाउन बिन्दु पर भली-भांति उतर पाने में सक्षम होता है। कई विमानों में आई-एल-एस प्रणाली सक्षम ऑटो-पायलट सुविधा भी होती है, जो विमान को इन संकेतों द्वारा मानवीय दखल के बिना भी सुरक्शःइत अवतरित करा देती है।
उपस्कर अवतरण प्रणाली की तीन श्रेणियां होती हैं, जो इन्हीं नामों वाले प्रचालन की श्रेणियों के लिये सहायक होती हैं। निम्न जानकारी ICAO, FAA एवं JAA से मिली जानकारी पर आधारित हैं; हालांकि कुछ स्थानों या राष्ट्रों में इससे अंतर भी संभव है।
लोकलाईज़र एवं ग्लाइडपाथ आवृत्तियाँ इस प्रकार जोड़ों में रखी जाती हैं कि एक बार के चयन से ही दोनों रिसीवर ट्यून हो पायें।
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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