चग़ताई भाषा (उज़बेक: چەغەتاي, अंग्रेज़ी: Chagatai) एक विलुप्त तुर्की भाषा है जो कभी मध्य एशिया के विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती थी। बीसवी सदी तक इसकी बोलचाल तो बंद हो चुकी थी लेकिन इसे एक साहित्यिक भाषा के रूप में फिर भी प्रयोग किया जा रहा था। भारतीय उपमहाद्वीप में मुग़ल साम्राज्य के शुरुआती सम्राटों की मातृभाषा भी चग़ताई तुर्की ही थी और बाबर ने अपनी प्रसिद्ध 'बाबरनामा' जीवनी इसी भाषा में लिखी थी। आधुनिक काल में उज़बेक भाषा और उइग़ुर भाषा चग़ताई के सबसे क़रीब हैं। उज़बेक लोग चग़ताई को अपनी भाषा की पूर्वजा मानते हैं और उसे अपनी धरोहर का एक अहम भाग भी मानते हैं।
चग़ताई भाषा का नाम मध्यकालीन चग़ताई ख़ानत पर पड़ा है जिसके क्षेत्र में यह बोली जाती थी। इस ख़ानत का नाम स्वयं मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान के दूसरे बेटे चग़ताई ख़ान पर पड़ा था। 'चग़ताई' शब्द में 'ग़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ग' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ग़लती' और 'ग़रीब' शब्दों के 'ग़' से मिलता है।
चग़ताई भाषा के सबसे प्रसिद्ध कवि मीर अली-शीर नवोई रहे थे जिन्होनें चग़ताई और फ़ारसी की गहरी तुलना करी थी और चग़ताई को फ़ारसी से कहीं अधिक अच्छी भाषा घोषित किया था। वे उज़बेकियों में इतने प्रसिद्ध हैं कि चग़ताई को कभी-कभी 'नवोई की भाषा' बुलाया जाता है। आधुनिक उज़बेकिस्तान के नवोई शहर और नवोई प्रान्त के नाम उन्ही के नाम पर रखे गए हैं।