खगोलशास्त्र में तारामंडल (Constellation) आकाश के ऐसे क्षेत्र को कहते हैं जिसके भीतर स्थित तारों के किसी समूह के बीच कल्पित रेखाएँ खींचकर कोई जानी-पहचानी आकृति प्रतीत होती है। इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं नें आकाश में तारों के बीच में कल्पित रेखाएँ खींचकर कुछ आकृतियाँ प्रतीत की हैं जिन्हें उन्होंने नाम दे दिए। मसलन प्राचीन भारत में एक मृगशीर्ष नाम का तारामंडल बताया गया है, जिसे यूनानी सभ्यता में ओरायन कहते हैं, जिसका अर्थ "शिकारी" है। प्राचीन भारत में तारामंडलों को नक्षत्र कहा जाता था। आधुनिक काल के खगोलशास्त्र में तारामंडल उन्ही तारों के समूहों को कहा जाता है जिन समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ में सहमति हो।
आधुनिक युग में किसी तारों के तारामंडल के इर्द-गिर्द के क्षेत्र को भी उसी तारामंडल का नाम दे दिया जाता है। इस प्रकार पूरे खगोलीय गोले को अलग-अलग तारामंडलों में विभाजित कर दिया गया है। अगर यह बताना हो कि कोई खगोलीय वस्तु रात्री में आकाश में कहाँ मिलेगी तो यह बताया जाता है कि वह किस तारामंडल में स्थित है। ध्यान रहें कि किसी तारामंडल में दिखने वाले तारे और अन्य वस्तुएँ पृथ्वी से देखने पर भले ही एक-दूसरे के समीप लगें लेकिन ज़रूरी नहीं है कि ऐसा वास्तव में भी हो। जिस तरह दूर देखने पर दो पहाड़ एक-दूसरे के समीप लग सकते हैं लेकिन पास जाने पर पता चलता है के उनमें बहुत दूरी है और एक पहाड़ वास्तव में दूसरे पहाड़ से मीलों पीछे है।
"तारामंडल" को संस्कृत में "नक्षत्र" कहते थे और विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके लिए आज भी यह शब्द प्रयोग होता है। तारामंडल को अंग्रेज़ी में "कॉन्स्टॅलेशन" (constellation) और अरबी में "मजमुआ-अल-नजूम" (مجمع النجوم) कहते हैं।
तारामंडल में वह तारे और खगोलीय वस्तुएं होती हैं जो पृथ्वी की सतह से देखने पर स्थाई रूप से आकाश में एक ही क्षेत्र में इकठ्ठी नज़र आती हैं। इसका मतलब यह नहीं है की ये वास्तव में एक-दूसरे के पास हैं या इनका आपस में कोई महत्वपूर्ण गुरुत्वाकर्षण बंधन है। इसके विपरीत तारागुच्छ ("स्टार क्लस्टर") के तारे वास्तव में एक गुच्छे में होते हैं और इनका आपस में गुरुत्वार्षण बंधन होता है।