किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि किसी पेड़ की उँचाई १० मीटर है तो हम उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय का मात्रक सेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम आदि हैं।
लॉर्ड केल्विन का निम्नलिखित कथन मापन के महत्त्व को प्रतिपादित करता है-
शोध विधितंत्र में मापन को वर्गीकृत करने का एक तरीका है मापन के स्तर का निर्धारण। चूँकि मापन में गुणों को संख्याओं द्वारा व्यक्त किया जाता है और संख्याओं के कुछ प्राकृतिक और मूल गुण (properties) होते हैं जैसे - उनकी अनन्यता, क्रमिकता, निश्चित अंतराल पर स्थित होना इत्यादि; हम मापन का वर्गीकरण इस आधार पर कर सकते हैं कि उसमें संख्याओं के कितने गुणों का समावेश किया गया है।
इस आधार पर मनोवैज्ञानिक स्टैनले स्मिथ स्टेवेंस ने मापन के चार स्तर बताए - नामिक मापक, क्रमिक मापक, अंतराल मापक और अनुपात मापक। इन श्रेणियों का प्रयोग शोध कार्यों में होता है और वहाँ यह किसी परिकल्पना के सत्यता परीक्षण के लिये प्रयोग में लायी जा रही सांख्यिकीय विधियों के चयन में महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिये यदि कोई मापन नामिक या क्रमिक स्तर पर है तो उपलब्ध आँकड़े का औसत ज्ञात करने के लिये समांतर माध्य नहीं निकाला जा सकता केवल बहुलक का प्रयोग किया जा सकता है।
प्राकृतिक विषयों का अध्ययन करते समय उनके बारे में सही ज्ञान प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि हम प्रकृति के कुछ गुणों की माप करें। साधारणतया यह पाया गया है कि माप में मुख्य रूप से तीन राशियाँ, लंबाई, भार तथा समय, उपलब्ध होती हैं। सैद्धांतिक रूप से प्रत्येक माप में उपर्युक्त राशियाँ ही आती हैं। इन राशियों में से किसी को भी मापने के लिये कोई निश्चित तथा सुविधाजनक परिमाण को मानक मान लिया जाता है। इसमें पूरी मात्रा माप ली जाती है। इसको हम उस विशेष राशि की इकाई, या एकक, अथवा मात्रक मानते हैं। उदाहरणस्वरूप, अर्थ को हम रूपए में गिनते हैं तथा तौल को किलोग्राम में। विभिन्न प्रकार की इकाइयाँ उपयोग में लाई जाती हैं।
विज्ञान में लंबाई, भार और समय को मूल इकाई की संज्ञा दी गई है, क्योंकि ये तीनों राशियाँ एक दूसरे पर निर्भर नहीं करती हैं। अन्य सभी प्रकार की इकाइयों का आधार मूल इकाइयाँ ही होती हैं। इन अन्य इकाइयों को व्यत्पन्न इकाइयों की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार क्षेत्रफल का इकाई एक ऐसे वर्ग का क्षेत्रफल है जिसकी लंबाई एक हो तथा चौड़ाई भी एक हो। आयतन की इकाई एक ऐसे धन का आयतन माना गया है जिसकी प्रत्येक भुजा की लंबाई एक हो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि क्षेत्रफल की इकाई तथा आयतन की इकाई लंबाई की इकाई से ही उत्पन्न होती हैं। गति की इकाई परिभाषा के अनुसार, दूरी को समय से भाग देने से प्राप्त होती है और चूँकि दूरी लंबाई में व्यक्त की जाती है, इसलिये गति की इकाई मूल इकाइयों पर आधृत है व्युत्पन्न इकाइयों का मूल इकाइयों से एक साधारण संबंध भी पाया गया है। प्राय: यह पाया जाता है कि व्युत्पन्न इकाइयाँ या तो बहुत बड़ी होती हैं अथवा बहुत छोटी। इस अवस्था में सुविधा के दृष्टिकोण से इनके कुछ गुणित, या उपगुणित, उपयोग में लाए जाते हैं। इन नई इकाइयों को व्यावहारिक इकाई के नाम से पुकारा जाता है।
वैज्ञानिक जगत् में माप के कार्यों के लिये आम तौर पर दो प्रकार की इकाइयों की पद्धति उपयोग में लाई जाती है :
इसे 'फुट पाउंड सेकंड पद्धति' (F. P. S. System) भी कहा जाता है। इस पद्धति में लंबाई को फुट में, भार को पाउंड में तथा समय को सेकंड में व्यक्त किया जाता है। यह प्रणाली खास तौर पर उन देशों में प्रचलित है, जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के अंग रह चुके थे। इसे विशेष रूप से ब्रिटिश इंजीनियर, या ब्रिटेन में प्रशिक्षित इंजीनियर, तथा ऋतु-विज्ञान-विशेषज्ञ उपयोग में लाते हैं; लेकिन इसका स्थान मीटरी प्रणाली लेती जा रही है।
इसे मीटरी पद्धति, अथवा 'सेंटीमीटर ग्राम सेकंड पद्धति' (C. G. S. System) भी कहते हैं। इस पद्धति को संसार भर में वैज्ञानिक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। इसमें लंबाई को सेंटीमीटर में, भार का ग्राम में तथा समय को एक सेकंड में माप जाता है।
मीटरी पद्धति ही परिवर्तित परिवर्धित करके मीटर-किलोग्राम-सेकेण्ड पद्धति बनी जो पुनः परिवर्धित होकर अन्तरराष्ट्रीय इकाई प्रणाली (S I ) बनी।
मीटरी प्रणाली में लंबाई की मानक इकाई को मीटर कहते हैं। प्रारंभ में जनतंत्रीय फ्रेंच कानून के अनुसार इसे उत्तरी ध्रुव से विषुवत् रेखा तक पैरिस से गुजरती हुई याम्योत्तर (meridian) की सीध में मापी गई दूरी के 1/107 वें हिस्सें के बराबर माना गया था। लेकिन आजकल जो मानक माना गया है वह पैरिस के निकट सेव्र (Severes) में रखे प्लैटिनम-इरीडियम मिश्रधातु के एक डंडे के सिरों पर बने दो चिह्नों के बीच की दूरी है, जब डंडा शून्य डिग्री सेंटीग्रेड पर होता है। इसे मानक मीटर कहा जाता है।
इस सारणी से विदित होता है कि 1 मिलीमीटर = 0.1 सेंटीमीटर = 0.01 डेसिमीटर = 0.001 मीटर। अतएव मीटरी प्रणाली में इकाइयों को केवल दशमलव के स्थानांतरण करने से ही बदला जा सकता है, जो अत्यंत सुविधाजनक है। इस प्रकार यह स्पष्ट है मीटरी प्रणाली अत्यंत सुविधाजनक पद्धति है।
खगोल विज्ञान (astronomy) में दूरी मापने के उपयोग में आनेवाली इकाई को प्रकाशवर्ष की संज्ञा दी गई है। प्रकाश एक वर्ष में जितनी दूरी तय करता है उसी को खगोल विज्ञान में सुविधा के हेतु दूरी की इकाई माना गया है। अत: 1 प्रकाशवर्ष = 9.45 x 1015 मीटर। ब्रिटिश प्रणाली, अर्थात् फुट पाउंड सेकंड पद्धति में, लंबाई की मानक इकाई ब्रिटिश राजकीय गज है। यह लंदन के राजकोष कार्यालय में रखे 62 डिग्री फारेनहाईट ताप पर काँस्य के डंडे पर स्थित स्वर्ण-डाटों पर बनी हुई रेखाओं के बीच की दूरी है।
लंबाई की सब मापों की तुलना से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सब पद्धतियों में मीटरी प्रणाली सबसे अधिक सुविधाजनक तथा वैज्ञानिक है। भारत सरकार ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए, सारे देश में मीटरी प्रणाली के उपयोग के लिये कानून बना दिया है। दोनो पद्धतियों में लंबाई की इकाइयों में ये संबंध हैं :
लंबाई को मापने के लिये लकड़ी या धातु की बनी हुई, पैमानों वाली पटरियाँ, या अन्य वस्तु के बने फीते, काम में लाए जाते हैं। इनके किनारे या तो सेंटीमीटर तथा मिलीमीटर में खुदे रहते हैं, अथवा इंच तथा उसके दसवें, आठवें या सोलहवें अंशों में। लंबी दूरियों को, या वक्र रेखाओं में लंबी दूरियों का, मापने के लिये मापक चेन, विशेषकर जमीन के सर्वेक्षण में, उपयोग में लाई जाती है।
जब पैमानों को लंबाई की सीध में सुविधा से नहीं रखा जा सकता, तब परकार, दंड परकार, या एक साधारण कैलिपर उपयोग में लाया जाता है। साधारण कैलिपर से भीतरी तथा बाहरी व्यास भी मापे जाते हैं। पाइप आदि के कोणों की माप करने के लिये वृत्तीय चल वर्नियर बनाए गए हैं। यदि मिलीमीटर के 1/10 वें हिस्से तक मापने की आवश्यकता हो, तो वहाँ पर चल वर्नियर का उपयोग किया जाता है। बहुत ही छोटी लंबाइयों को, जैसे किसी चद्दर की मोटाई या एक पतले तार का व्यास आदि, मापने के लिये स्क्रूगेज उपयोग में लाया जाता है।
क्षेत्रफल की इकाई मीटर पद्धति में वर्ग सेंटीमीटर तथा ब्रिटिश पद्धति में वर्ग फुट है। आयतन की इकाई मीटरी प्रणाली में एक घन किलोग्राम शुद्ध पानी के आयतन को मीटरी पद्धति में आयतन की इकाई, अर्थात् लिटर, कहते हैैं। साधारणत: एक घन डेसिमीटर को लिटर के समतुल्य माना गया है। आयतन की इकाई ब्रिटिश पद्धति में घनफुट कहलाती है। इस पद्धति में धारिता की मानक माप को गैलन कहा जाता है। 62 डिग्री फा0 ताप पर 10 पाउंड आसुत पानी 1 गैलन के बराबर माना गया है। यह पाया गया है कि 1 गैलन = 4.54 लिटर होता है। धारिता की मीटरा इकाई को लिटर माना गया है। 13 घन इंच के संबंध में यह पाया गया है कि 4 डिग्री सें0 पर हवा से रहित एक घन इंच शुद्ध पानी का भार 252.297 ग्रेन होता है।
मीटरी पद्धति में द्रव्यमान की इकाई को ग्राम (किलोग्राम का हजारवाँ भाग) कहते हैं और एक ग्राम का भार 4 डिग्री सें0 ताप के शुद्ध पानी के एक घन सेंटीमीटर (c.c.) के भार के बराबर होता है।
ब्रिटिश प्रणाली में द्रव्यमान की इकाई को पाउंड कहते हैं। यह एक प्लैटिनम के बेलन का भार है, जो लंदन के राजकीय कार्यालय में रखा है।
= 437 1/2 ग्रेन
= 7,000 ग्रेन
द्रव्यमान की इकाइयों का दोनों पद्धतियों में एक संबंध पाया गया है जो इस प्रकार है:
हमें सूर्य आकाश के आर-पार जाता मालूम पड़ता है। आकाश में सूर्य का सर्वोच्च स्थान या उच्चतम उन्नतांश तब होता है जब वह याम्योत्तर (meridian) पर होता है। याम्योत्तर से सूर्य के दो बार जाने के अंतराल को दृष्ट सूर्य दिन (Apparent solar day) कहते हैं। अनेकानेक कारणों से दृष्ट-सूर्य-दिन की अवधि दिन प्रति दिन बदलती रहती है, लेकिन एक वर्ष के पश्चात् यह उसी परिवर्तन चक्र का दुहराती है। वर्ष की अवधि 365 1/4 दिनों की होती है। यदि हम वर्ष के सभी दिनों के काल के जोड़ दें और इसे वर्ष के पूरे दिनों से भाग दें, तो हम एक समयांतराल प्राप्त करते हैं, जिसे वेज्ञानिकों ने "माध्य सूर्य दिन" की संज्ञा दी है। इस समय को चौबीस घंटों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक घंटे को साठ मिनट में तथा प्रत्येक मिनट को साठ सेकंड में बाँटा गया है। समय की इकाई को मीटरी तथा ब्रिटिश दोनों पद्धतियों में सेकंड माना गया है, जो माध्य सूर्य दिन का 1/86,400 वाँ हिस्सा है।
किसी स्थान के शिरोबिंदु के पार किसी स्थिर तारे के क्रमिक गमनों (transits) में जो समयांतराल व्यतीत होता है, वह तारे के क्रमिक याम्योत्तरगमन के बीच का काल, या नाक्षत्र दिन (sidereal day) कहलाता है। इसका मान स्थिर पाया गया है। नाक्षत्र दिवस माध्य सूर्य दिन से लगभग चार मिनट कम होता है।
यह मालूम करने के लिये कि दो समयांतराल बराबर हैं या नहीं, अथवा मानक समय को बराबर समय के उपांतराल (subinterval) में विभाजित करने के लिये, दोलक काम में लाया जाता है। दो समयांतराल तभी बराबर कहे जाते हैं जब प्रत्येक में दोलक की दोलन संख्या एक ही होती हे। यदि दोलक के दोलनों की संख्या एक "माध्य सौर दिन" में 60x60x24 होती है, तो प्रत्येक दालन का समयांतराल एक सेकण्ड कहा जाता है। हमारी घड़ियों में माध्य सौर काल उपयोग में लाया जाता है।
देखें, मापन के मात्रक
== भारतीय मापें ==kisi vastu ke tal ke chhetra fal ka matrak