शब-ए-क़द्र | |
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आधिकारिक नाम | ليلة القدر (लई लतुल क़द्र क़द्र) |
अन्य नाम | शब ए क़द्र, लैलतुल-क़द्र |
अनुयायी | मुस्लिम |
तिथि | देखें |
इसलामी संस्कृति पर एक शृंखला का भाग |
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शब-ए-क़द्र (अंग्रेजी: Laylat al-Qadr, उर्दू: شب قدر) या लैलतुल-क़द्र मुस्लिम समुदाय रमज़ान के पवित्र महीने की एक शुभ रात है। उस रात की विशेषता मुस्लिम मान्यता के अनुसार कुरान की आयतों का पृथ्वी पर जिब्रील जिबरील नाम के फ़रिशते के ज़रिए पैगम्बर मुहम्मद पर अवतरण (नाज़िल) होना शुरू हुआ था। कुरआन के अनुसार वो रमज़ान की कोई भी रात हो सकती है। हदीस में यह रात आम तौर से 27वे रमज़ान और आखरी १० दिन में की भी मानी जाती है जिसमें मुसलमान जागते हैं और अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से क्षमा माँगते हैं।
इस रात की निश्चित पहचान ना होने के कारण आस्थावान मुसलमान लगातार दस दिनों तक उपासना करने के लिए एतिकाफ़ अर्थात दस दिनों तक लगातार मस्जिद में रहकर भी इबादत करते हैं।
शब-ए-क़द्र हर साल ही किसी एक तय रात में नहीं होती बल्कि बदलती रहती है।
क़द्र की रात के निर्धारण करने के बारे में विद्वानों ने कई कथनों पर मतभेद किया है, परन्तु सही होने के सबसे निकट कथन यह है कि वह रात रमज़ान की अंतिम दस रातों की विषम (ताक़) संख्या वाली रातों (21,23,25,27,29)
में से कोई एक है।
अहल-ए-तशीअ अर्थात शिया मुसलमानों के अनुसार ये उन्नीसवीं, इक्कीसवीं या तएसवीं रात है और सत्ताईसवें रात और पंद्रह शाबान(शबे बरात) की रात के बारे में भी शब-ए-क़द्र का हो सकना माना जाता है।
शिया और सुन्नी मुसलमानों में रमज़ान की सत्ताईसवें रात को शबे क़द्र होने को अधिक मानते हैं।
“निःसंदेह हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र की रात में उतारा है। और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या हैॽ क़द्र की रात हज़ार महीने से उत्तम है। उसमें फ़रिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब की आज्ञा से उतरते हैं हर महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए। वह पूर्णतः शान्ति की रात है जो फ़ज्र (उषाकाल) के उदय होने तक रहती है।”
“जो व्यक्ति क़द्र की रात में ईमान और एह्तिसाब के साथ (यानी अल्लाह के लिए नीयत को खालिस करते हुए) इबादत करेगा उसके पहले के पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 1901) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 760) ने रिवायत किया है।
“क़द्र की रात को रमज़ान के महीने के अंतिम दस दिनों की विषम संख्या वाली रातों में तलाश करो।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्याः 2017) और मुस्लिम (हदीस संख्याः 1169) ने रिवायत किया है।
मैंने शबे क़द्र की तलाश के लिए रमजान के पहले असरे(दस दिन) का एतकाफ (मस्जिद में रात दिन इबादत करना) किया फिर बीच के असरे का एतकाफ किया फिर मुझे बताया गया कि शबे कदर आखरी असरे में है सो तुम में से जो शख्स मेरे साथ एतकाफ करना चाहे वह कर ले। (सही मुस्लिम, पृष्ठ 594, हदीस 1168)
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(मदद)
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