शिशुग्रह (planetesimal) उन ठोस वस्तुओं को कहते हैं जो किसी तारे के इर्द-गिर्द के आदिग्रह चक्र या मलबा चक्र में बन रही होती हैं।
हालांकि खगोलशास्त्रियों ने आजतक किसी शिशुग्रह को वास्तव में देखा नहीं है लेकिन ग्रह-निर्माण की प्रक्रिया के बारे में यह विचार है कि आरम्भ में किसी तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हुआ खगोलीय धूल का चक्र होता है। फिर इस चक्र के कण एक-दूसरे से टकारते है और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण कभी-कभी एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। धीरे-धीरे वस्तुएँ बनने लगती हैं (और प्रहारों से टूटती भी रहती हैं)। कुछ वस्तुएँ जब बड़ा आकार कर लेती हैं तो उनका गुरुत्वाकर्षण भी बढ़ जाता है और वे और तेज़ी से कणों को अपनी ओर खींच कर आकार बढ़ाने लगती हैं। इस स्तर पर उन्हें शिशुग्रह कहा जाता है क्योंकि इसके बाद इनमें जल्द ही अन्य वस्तुओं और मलबे को खींचकर ग्रह का आकार बना लेने की गुरुत्वाकर्षक क्षमता आ जाती है।
बढ़ते-बढ़ते कुछ समय में इनका आकार हमारे चंद्रमा जितना हो जाता है और भयंकर गुरुत्वाकर्षण की सिकुड़न से इसका रूप भी गोलाकार होने लगता है। फिर यह अपने तारे की परिक्रमा करते हुए अपने कक्षा (ओरबिट) में स्थित सभी वस्तुओं को अपने में विलीन कर लेती है और अपना मार्ग साफ़ कर लेती है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के नियमों के तहत यह परिक्रमा कक्षा में स्थित वस्तुओं और मलबे को साफ़ कर लेने की प्रक्रिया ही ग्रह का दर्जा पा लेने की परिभाषा है।
ध्यान दें कि यह आवश्यक नहीं है कि सभी शिशुग्रह बढ़कर ग्रह बन सकें। अक्सर इनमें आपकी टक्कर होने से यह टूटकर छोटे भी हो जाते हैं। हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह ४ वेस्टा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ लगता है। वेस्टा के दक्षिणी गोलार्ध (हॅमीस्फ़ेयर) में रियासिल्विया (Rheasilvia) नामक एक ५०५ किमी का गहरा प्रहार क्रेटर है और माना जाता है के क़रीब एक अरब साल पूर्व एक बड़ी वस्तु का वेस्टा के साथ भयंकर टकराव हुआ जो वेस्टा का एक बड़ा अंश उखाड़ गया और उसे ग्रह का आकार ग्रहण करने से रोक गया।