खेल सिद्धांत और अर्थशास्त्र में शून्य-संचय खेल (zero-sum game) या शून्य-जोड़ खेल ऐसी व्यवहारिक परिस्थिति को कहा जाता है जिसमें एक व्यक्ति को जितना लाभ होता है ठीक उतनी ही हानि किसी अन्य व्यक्ति (या व्यक्तियों) को होती है। मसलन दो लोगों के पास सौ-सौ रुपये हों और वे आपस में पैसों की लेन-देन कर रहे हों तो यह एक 'शून्य-संचय खेल' है क्योंकि जितना अधिक एक को मिलेगा उतना ही कम दूसरे को मिलेगा। अगर दोनों की लाभ और हानि का कुल संचय करके देखा जाए तो शुन्य होगा। इसके विपरीत अशून्य-संचय खेल में अगर नफ़े-नुकसान को मिलाकर देखा जाए तो शून्य से ज़्यादा या कम हो सकता है। शुन्य-संचय खेल हमेशा प्रतियोगी (competitive, कम्पॅटटिव) ही होता है जबकि अशून्य-संचय खेल प्रतियोगी या ग़ैर-प्रतियोगी हो सकता है।
लाल | पीला | हरा | |
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१ | ३०, -३० | -१०, १० | २०, -२० |
२ | १०, -१० | २०, -२० | -२०, २० |
एक खेल का उदाहरण लीजिये जिसमें 'क' और 'ख' नामक दो खिलाड़ी हैं। खिलाड़ी 'क' को दो में से एक अंक का चुनाव करना है - १ या २। खिलाड़ी 'ख' को तीन रंगों में से एक चुनना है - लाल, पीला या हरा। इन दोनों के चुनावों को देखकर इनमें से एक को एक राशि ईनाम में दी जाती है और दूसरे से उतनी ही राशि जुर्माने में ली जाती है। साथ की तालिका में दर्शाया गया है की चुनावों के हिसाब यह राशियाँ क्या हैं (लाल राशि खिलाड़ी 'क' की और नीली राशि खिलाड़ी 'ख' की है)। देखा जा सकता है कि यह एक शून्य-संचय खेल है क्योंकि इसमें जितना लाभ एक को होगा उतना ही नुकसान दूसरे को होगा। खेल सिद्धांत में ऐसी ही परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है। इस खेल में यह हो सकता है -
देखा जा सकता है कि इसमें दोनों खिलाड़ी एक दूसरे के विचारों को समझने की अत्याधिक कोशिश करते हैं क्योंकि उनके लिए अच्छा चुनाव क्या है यह दूसरे के चुनाव पर निर्भर है। इस प्रकार के 'शुन्य-संचय खेल' का हल इमेल बोरेल (Émile Borel) और जॉन वाॅन न्यूमन (John von Neumann) नामक गणितज्ञों ने प्रायिकता (प्रॉबाबिलिटी) के प्रयोग से दिया था।
अक्सर दो प्रतिद्वंदियों में ऐसी स्थिति बन जाती है जिसमें द्वेष की आदत पड़ने से वह यह समझने लगते हैं की अगर एक का कुछ लाभ होता है तो इसका मतलब है कि दूसरे का उतना ही नुकसान हो रहा है। अर्थात वह यह समझने लगते हैं कि उनकी आपसी समबन्ध एक शुन्य-संचय खेल है। शुन्य-संचय खेलों में अगर एक पक्ष दूसरे को कोई भी हानि पहुँचा सके तो अवश्य पहुँचाने की कोशिश करता है। लेकिन ऐसा भी होता है कि कुछ स्थितियों में वास्तव में आपसी सम्बन्धों का सिलसिला एक अशून्य-संचय खेल होता है जिसमें किसी घटना से दोनों का लाभ या दोनों की हानि भी हो सकती है। मसलन व्यापार को लेकर देशों में अक्सर आपसी झड़पें हो जाती हैं लेकिन यह ऐसी चीज़ है जिस से दोनों पक्षों का लाभ हो सकता है।