स्वसंगठन (self-organization), जो स्वप्रसूत व्यवस्था (spontaneous order) भी कहलाता है, ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें किसी अव्यवस्थित तंत्र (सिस्टम) के भाग अपनी-अपनी गतिविधियों द्वारा एक-दूसरे को प्रभावित कर के उस तंत्र में (बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के) स्वयं ही व्यवस्थित कर लेते हैं। यह उभरने वाला संगठन उस तंत्र के सभी भागों को अपने-आप में सम्मिलित कर लेता है। स्वसंगठन जटिल तंत्रों में उदगमता (ऍमेर्जेन्स) से उत्पन्न होता है। अक्सर यह उदगम व्यवस्था मज़बूत होती है और, यदी तंत्र को छेड़कर इस संगठन को भंग करा जाये तो तंत्र कुछ हद तक इसकी स्वयं ही मरम्म्त कर के उसे पुनःस्थापित करने में सक्षम होता है।
उदाहरण
मानव समाज में, जब जनसंख्या कुछ हद से अधिक हो जाये, तो मंडियाँ व बाज़ार स्वयं ही संगठित हो जाते हैं।
पक्षियों के दलों में प्रत्येक पक्षी अपनी सहज प्रवृत्ति के अनुसार व्यवहार करता है लेकिन उनके आपसी प्रभाव से इन दलों में स्वसंगठित रूप से झुंड व्यवहार उत्पन्न हो जाता है। ठीक यही कीटों व मछलियों के दलों में देखा जाता है।
रेगिस्तानों में रेत पर वायु प्रवाह से रेत के कण स्वयं ही लहरों में स्वसंगठित हो जाते हैं।
इन सभी उदाहरणों में यदी किसी बाहरी हस्तक्षेप से स्वसंगठन को छोटी मात्रा में भंग करा जाये तो समय के साथ-साथ यह फिर से उत्पन्न हो जाता है।