श्रीनारायण चतुर्वेदी | |
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जन्म | २८ दिस्, १८९३ इटावा, उत्तर-प्रदेश, भारत |
मौत | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
भाषा | हिन्दी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधा | पद् |
उल्लेखनीय कामs | रत्नदीप कविता संग्रह |
पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी (१८९५ -- १८ अगस्त १९९० ) हिन्दी के साहित्यकार, प्रचारक, सर्जक तथा पत्रकार थे जो आजीवन हिन्दी के लिये समर्पित रहे। वे सरस्वती पत्रिका के सम्पादक रहे। उन्होने राष्ट्र को हिन्दीमय बनाने के लिये जनता में भाषा की जीवन्त चेतना को उकसाया। अपनी अमूल्य हिन्दी सेवा द्वारा उन्होने भारतरत्न मदन मोहन मालवीय तथा पुरुषोत्तम दास टंडन की योजनाओं और लक्ष्यों को आगे बढ़ाया।
श्री नारायण चतुर्वेदी का जन्म उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में सन् 1895 ई॰ में हुआ माना जाता है तथा श्रीनारायण जी इसी जन्मतिथि के हिसाब से ही भारत सरकार की राजकीय सेवा से सेवानिवृत भी हुये। (हाँलांकि इनकी मृत्यु के उपरांत प्रकाशित आत्मकथा ‘परिवेश की कथा’ में उन्होने अपना जन्म आश्विन कृष्ण तृतीया, अर्थात 28 दिसम्बर 1893 ई0 की मध्यरात्रि को होना अवगत कराया है)। इनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी उस क्षेत्र में अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे। पिता की विद्धता का सीधा प्रभाव श्रीनारायण जी पर पड़ा और इनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में एम0ए0 करने के साथ पूर्ण हुयी। कालान्तर में इन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से शैक्षणिक तकनीकी में उच्च शिक्षा भी ग्रहण की। स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने सन् 1926 से 1930 तक जिनेवा में भारतीय शैक्षिक समिति के प्रमुख के रूप में भाग लिया। ये कई वर्षो तक उत्तर प्रदेश सरकार के शैक्षिक विभाग के भी प्रमुख रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इन्होंने आल इंन्डिया रेडियो के उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात रहकर हिंदी भाषा विज्ञान के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुये सेवानिवृत हुये।
इनकी ख्याति एक कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेेखक के रूप में है।
इनकी ख्याति एक कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेखक के रूप में है। उन्होंने अपनी कवितायें ‘श्रीवर’ नाम से लिखकर दो कविता संग्रह तैयार किये हैं 1-रत्नदीप तथा 2-जीवन कण
इनके द्वारा अंग्रेजी भाषा से किया गया अनुवाद ‘विश्व का इतिहास ’ तथा ‘शासक’ महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। वे हिन्दी भाषा में प्रकाशित संग्राहक कोश ‘विश्वभारती’ के संपादक रहे।
पत्रकारिता के क्षेत्र में राजकीय सेवा से सेवानिवृति के उपरांत लगभग 20 वर्षो तक हिन्दी साहित्य जगत की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘सरस्वती’ के संपादक के रूप में इनका योगदान अद्वितीय रहा। ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादन काल में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात विद्वानों को श्रद्धांजलि स्वरूप लिखे गये संपादकीय लेखेां का संग्रह ‘पावन स्मरण (1976)’ के नाम से प्रकाशित हुआ है।
‘विनोद शर्मा अभिनंदन ग्रन्थ’ (विनोद शर्मा उनका कलोल-कल्पित नाम था) हास्य व्यंग्य का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। उनके द्वारा लिखित ‘आधुनिक हिन्दी का आदिकाल’ (1857-1908)’ तथा ‘साहित्यिक चुटकुले’ भी महत्वपर्ण दस्तावेज हैं।
वे स्वयं को ‘यूथफुल ओल्ड मैन’ कहलाना पसंद करते थे। उनके ही शब्दों में कहें तेा ‘इस ‘यूथफुल ओल्ड मैन’ केा भारत सरकार ने 1982 में पद्म भूषण से अलंकृत किया’।
श्रीनारायण जी जिस विषय पर लिखते थे अपनी विहंगम और विस्तारित द्वष्टि सेे सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सहित समस्त परिवेशों को सम्मिलित करते हुये ही लिखते थे जिससे उनकी रचनायें अपने काल की छवि के महत्वपूर्ण अभिलेख के रूप में अवतरित होती रही हैं। उनकी इस विस्तारित लेखन शैली का प्रभाव आत्मकथा के लेखन पर भी पड़ा। उन्होंने अपनी आत्मकथा का लेखन वर्ष 1967 में प्रारंभ किया परन्तु अत्यधिक विस्तार से लिखने के कारण पूरी न कर सके। इनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीशैलनाथ चर्तुवेदी ने इसकी भूमिका में लिखा हैः-
वे आत्मकथा लेखन को आत्मश्लाघा अथवा आत्म निंदा के व्याज से आत्म विज्ञापन अथवा अहंकार कथा मानते थे इसलिये अपनी आत्मकथा लिखने के पक्ष में नहीं थे। पं0 विद्यानिवास मिश्र के बारंबार अनुरोध करने पर इसे लिखने को तैयार हुये परन्तु शीघ्र ही लिखना बंद कर बैठे। इसे बंद करने के पीछे एक और भी कारण था कि उन्हें इस प्रकार के लेखन की निरर्थकता का अनुभव होने लगा। इस तथ्य को उन्होंने अपने लेख ‘क्या, क्यों और किसके लिये लिखूँ?’ शीर्षक में व्यक्त भी किया है। बहरहाल इनकी लिखी इस अधूरी आत्मकथा का प्रकाशन वर्ष 1995 में प्रभात प्रकाशन से ‘परिवेश की कथा’ नामक पुस्तक के माध्यम से संभव हो सका। दुर्भाग्य से तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी और हिंदी साहित्य जगत इस आत्मकथा के माध्यम से सम्पूर्ण शताब्दी के ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तत की छवि को देख पाने का सौभाग्य न पा सका।
चतुर्वेदी जी बहुआयामी व्यक्ति के स्वामी थे। पं0 विद्यानिवास मिश्र ने श्रीनारायण चतुर्वेदी जी के बहुमुखी व्यक्तित्व का वर्णन करते हुये लिखा हैः-